ईरान के लिए काफी बुरा साल ऐसा देश जिसके लिए साल 2024 सबसे बुरी तरह बीता, राष्ट्रपति की भी हुई रहस्यमयी मौत

साल 2024 में इस देश के भीतर एक के बाद एक ऐसी कई घटनाएं हुईं, जिससे ईरान को यह समझ आ गया कि वह अब पहले जैसी ताकतवर स्थिति में नहीं है. 

साल 2024 ईरान के लिए काफी बुरा साल साबित हुआ है. पहले जहां यह देश अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में प्रभावी और मजबूत था, अब उसकी स्थिति काफी कमजोर हो गई है. इस देश को पिछले एक साल में न सिर्फ युद्ध संबंधी, बल्कि कूटनीतिक मोर्चे और आंतरिक राजनीति में भी काफी नुकसान का सामना करना पड़ा है. इस देश में एक साल के भीतर एक के बाद एक ऐसी कई घटनाएं हुईं, जिससे ईरान को यह समझ आ गया कि वह अब पहले जैसी ताकतवर स्थिति में नहीं है.

इसके अलावा, इसी साल राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी की भी रहस्यमयी मौत जैसी घटनाएं भी हुई जिसने इस देश के लिए 2024 को और भी कठिन बना दिया.  

ऐसे में इस रिपोर्ट सिलसिलेवार तरीके से समझते हैं कि आखिर साल 2024 ईरान के लिए सबसे बुरे सालों में क्यों शुमार होने वाला है.

ईरान के लिए खत्म नहीं हो रहीं मुश्किलें

ईरान, जो लंबे समय से मिडिल इस्ट में अपनी शिया धर्म और राजनीति के कारण एक बड़ी ताकत रहा है, इस साल कई संघर्षों और विवादों में फंसा हुआ दिखा. साल 2023 के अक्टूबर में जब हमास ने इजरायल पर हमला किया था, उस वक्त यह सिर्फ इजरायल और हमास के बीच युद्ध का कारण नहीं बना, बल्कि इस युद्ध ने ईरान और इजरायल के बीच भी तनाव को बढ़ा दिया. 

इस हमले में ईरान ने सीधे तौर पर हमास की मदद की थी जिसके कारण ईजरायल और ईरान के बीच रिश्ते और भी खराब हो गए, क्योंकि इससे सिर्फ सैन्य संघर्ष ही नहीं बढ़ा, बल्कि ईरान को अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति में भी बड़ी मुश्किलें आईं. यानी, हमास की मदद के लिए ईरान न सिर्फ युद्ध में उलझा, बल्कि दुनियाभर में अपनी छवि भी खराब कर बैठा.

रईसी की हवाई दुर्घटना में मौत

ईरान के लिए 2024 की शुरुत बहुत कठिन रही. मई में, राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी की एक हेलीकॉप्टर दुर्घटना में मौत हो गई. यह घटना सिर्फ एक दुखद घटना नहीं थी, बल्कि इसने कई सवाल उठाए, जैसे कि एक राष्ट्रपति का अचानक और रहस्यमय तरीके से मौत कैसे हुई. रईसी, जो ईरान के सर्वोच्च नेता अली ख़ामेनेई के करीबी सहयोगी और उनके संभावित उत्तराधिकारी माने जाते थे, उनकी मौत ने देश में सत्ता संघर्ष को जन्म दिया.

रईसी की मौत ने यह दिखा दिया कि ईरान की राजनीतिक व्यवस्था अब कमजोर हो गई है, क्योंकि इस तरह की घटनाएं सरकार की क्षमता पर सवाल उठाती हैं. उनके निधन से ईरान में राजनीतिक अस्थिरता फैल गई, और उनके समर्थकों के बीच निराशा बढ़ गई. साथ ही, उनके विरोधी गुटों को यह संदेश मिला कि ईरान की सत्ता अब कमजोर हो रही है. रईसी के न होने से देश में नेतृत्व का संकट पैदा हुआ, जिससे ईरान की आंतरिक राजनीति और भी जटिल हो गई.

सैन्य शक्ति हुई कमजोर

साल 2024 में ईरान की सैन्य स्थिति काफी कमजोर दिखाई दी, खासकर उस समय जब उसने एक बड़ा हमला किया. इस साल अप्रैल में, इजरायल ने दमिश्क (सीरिया) में ईरान के दूतावास पर बमबारी की, जिसके बाद ईरान ने इजरायल पर 300 से ज्यादा मिसाइलों और ड्रोन से जवाबी हमला किया. हालांकि ईरान का ये हमला पूरी तरह से नाकाम हो गया. दरअसल इजरायल ने अमेरिका, सऊदी अरब और अन्य देशों की मदद से लगभग सभी मिसाइलों को नष्ट कर दिया.

इस हमले की विफलता ने ईरान के सैन्य रणनीति में खामियों को उजागर किया. इससे यह भी साबित हुआ कि ईरान के पास उन देशों से मुकाबला करने के लिए पर्याप्त सैन्य शक्ति नहीं है, जिनका वह सामना कर रहा है. यह घटना ईरान के लिए एक बड़ा झटका था, क्योंकि इससे उसकी क्षेत्रीय ताकत और अस्तित्व को खतरा महसूस हुआ.

हिजबुल्लाह और हमास 

2024 में, इजरायल ने न सिर्फ हमास, बल्कि हिजबुल्लाह को भी कमजोर कर दिया, जो ईरान का करीबी सहयोगी है. इजरायल की सैन्य कार्रवाई ने हिजबुल्लाह के कई नेताओं को निशाना बनाया और इन हमलों के दौरान ईरान के कई अहम हथियार भी नष्ट हो गए. इससे यह साफ हो गया कि हिजबुल्लाह अब पहले जैसी ताकतवर नहीं रहा. नवंबर में जब हिजबुल्लाह ने संघर्ष विराम स्वीकार किया, तो यह दर्शाता है कि ईरान का क्षेत्रीय प्रभाव अब कम हो चुका है.

हमास और हिजबुल्लाह पहले ईरान के बहुत महत्वपूर्ण सहयोगी थे और इन दोनों संगठनों के साथ मिलकर ईरान ने मध्य-पूर्व में अपनी ताकत बनाई थी, लेकिन अब ये संगठन उतने प्रभावशाली नहीं रहे, जितने पहले हुआ करते थे. हिज्बुल्लाह और हमास की कमजोरी ने ईरान के लिए बड़ा संकट खड़ा किया है, क्योंकि ये संगठन ईरान की क्षेत्रीय रणनीति और सामरिक स्थिति के अहम हिस्से थे. इनकी कमजोरी से ईरान की ताकत में कमी आई है, जिससे उसकी स्थिति और भी जटिल हो गई है.

सीरिया में असद का पतन, ईरान के लिए एक बड़ा झटका

सीरिया में राष्ट्रपति बशर अल-असद का पतन ईरान के लिए सबसे बड़ा नुकसान साबित हुआ. असद की सरकार, जो ईरान का एक प्रमुख सहयोगी था, अब कमजोर हो गई है, और इसके गिरने से ईरान के मध्य-पूर्व में प्रभाव का एक प्रमुख स्तंभ ढह गया है. असद के साथ ईरान का गठबंधन बहुत महत्वपूर्ण था, क्योंकि सीरिया ने ईरान को एक प्रमुख रणनीतिक आधार प्रदान किया था, जिससे ईरान पूरे क्षेत्र में अपनी उपस्थिति बनाए रख सकता था.

लेकिन असद का पतन अब एक नई चुनौती को जन्म दे रहा है. नए सुन्नी मुस्लिम नेतृत्व के तहत सीरिया, ईरान के शिया नेतृत्व के लिए एक बड़ी चुनौती बन सकता है, क्योंकि यह ईरान की शिया-संप्रदायिक नीति के खिलाफ हो सकता है. ईरान के लिए यह एक भारी झटका है, क्योंकि सीरिया में उसकी उपस्थिति एक महत्वपूर्ण रणनीतिक आधार था.

ट्रंप का वापस आना 

इतना ही नहीं साल 2024 के अंत में, अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप की वापसी की संभावना ने ईरान के लिए और भी अनिश्चितता का संकेत दे दिया है. ट्रंप, जो हमेशा से ईरान के खिलाफ सख्त रुख अपनाते रहे हैं, ईरान के लिए एक बड़ा खतरा बन सकते हैं. उनके दृष्टिकोण और नीतियां ईरान के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकती हैं, क्योंकि ट्रंप की सरकार ने पहले ईरान के खिलाफ आर्थिक प्रतिबंध लगाए थे और परमाणु समझौते से भी खुद को बाहर कर लिया था.

हालांकि, कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि ट्रंप भले ही सख्त नीतियां अपनाते हों, लेकिन ईरान की कमजोर स्थिति को देखते हुए, वे ईरान पर दबाव डाल सकते हैं कि वह एक समझौते की दिशा में कदम बढ़ाए. रयान क्रॉकर, जो अमेरिका के पूर्व राजदूत हैं, ने न्यूयॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट में कहा कि ईरान ने हमेशा लंबी अवधि के लिए अपनी रणनीति बनाई है और अब हो सकता है कि वह अपनी स्थिति को फिर से मजबूत करने के लिए कदम उठाए. लेकिन सच्चाई यह है कि 2024 ने ईरान की ताकत और प्रभाव को बहुत हद तक कमजोर कर दिया है.

पहले जो ईरान एक प्रमुख ताकत के रूप में नजर आता था, अब वह कई मोर्चों पर संघर्ष कर रहा है. ऐसे में, ट्रंप की वापसी के बाद ईरान के लिए अपनी स्थिति को पुनः स्थापित करना और अपनी प्रभावी भूमिका को फिर से हासिल करना और भी मुश्किल हो सकता है. 

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