Rajya Sabha Cash Row: संसद के उच्च सदन राज्यसभा में नोटों की गड्डी मिलने का मामला सामने आया है। गुरुवार को कार्यवाही के बाद सदन की जांच के दौरान ये गड्डी बरामद हुई। केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू और पीयूष गोयल ने अब इस मामले की जांच की बात कही है।
संसद के शीतकालीन सत्र में लगातार हंगामा जारी है। शुक्रवार को उस वक्त हंगामा तेज हो गया जब राज्यसभा में नोटों की गड्डी मिलने की जानकारी सामने आई। गुरुवार को कार्यवाही के बाद सदन की जांच के दौरान नोटों की गड्डी कांग्रेस सांसद अभिषेक मनु सिंघवी को आवंटित सीट से मिली। हालांकि, सिंघवी ने आरोपों से नकारते हुए कहा कि वह केवल 500 रुपये की एक नोट लेकर संसद जाते हैं।
फिलहाल नोटों की गड्डी मिलने की जांच की मांग की जा रही है। केंद्रीय मंत्री और राज्यसभा भाजपा सांसद जेपी नड्डा ने कहा कि यह घटना सामान्य नहीं है और ये सदन की गरिमा पर चोट है। सभापति को घटना की जांच करानी चाहिए। केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू और पीयूष गोयल ने भी मामले की जांच की बात कही। संदन में पैसे से जुड़ा ये कोई पहला विवाद नहीं है। पहले भी इस पैसे जुड़े अलग-अलग मामले आते रहे हैं। कभी सांसदों पर पैसे लेकर वोट देने का आरोप लगा तो कभी पैसे लेकर सवाल पूछने का आरोप लगा। कभी खुद सांसदों ने ही सदन में नोटों की गड्डियां लहराईं तो कभी पैसे लेकर राज्यसभा चुनाव में वोट डालने का आरोप किसी विधायक पर लगा।
आइये जानते हैं कि संसद में नोटों को लेकर कब-कब बवाल हुआ? इन मामलों की जांच में क्या निकला?
पुराना संसद भवन
झामुमो नेताओं पर लगे रिश्वत लेने के आरोप
1991 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने जीत हासिल की थी और पीवी नरसिम्हा राव देश के प्रधानमंत्री बनाए गए थे। चुनाव के करीब दो साल बाद जुलाई 1993 में नरसिम्हा राव सरकार को अविश्वास मत का सामना करना पड़ा। हालांकि, सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव 14 वोटों से गिर गया जब पक्ष में 251 वोट और विरोध में 265 वोट पड़े। न्यूज एजेंसी पीटीआई के अनुसार, शिबू सोरेन और उनके चार सांसदों ने तत्कालीन पीवी नरसिम्हा राव सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव के खिलाफ वोट देने के लिए रिश्वत ली थी। अल्पमत में रही नरसिम्हा राव सरकार उनके समर्थन से अविश्वास प्रस्ताव से बच गई। इसके बाद भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 (पीसीए) के तहत एक शिकायत दर्ज की गई जिसमें आरोप लगाया गया कि अविश्वास प्रस्ताव के खिलाफ वोट करने के लिए कुछ सांसदों को रिश्वत दी गई थी।
आगे चलकर यह मामला देश की सर्वोच्च अदालत पहुंच गया। अदालत में रिश्वत लेने के आरोपी सांसदों ने अपने बचाव में दो अहम तर्क दिए। पहला तर्क था कि उन्हें संसद में उनके द्वारा डाले गए किसी भी वोट और ऐसे वोट डालने से जुड़े किसी भी कार्य के लिए संविधान के अनुच्छेद 105 के तहत छूट थी। दूसरा तर्क था कि सांसद सार्वजनिक पद पर नहीं होते हैं और इसलिए उन्हें पीसीए के दायरे में नहीं लाया जा सकता। न्यायालय इन तर्कों से सहमत हुआ और अप्रैल 1998 में तीन-दो के बहुमत से फैसला सुनाया। इसमें कहा गया था कि सांसदों को न केवल संसद में उनके द्वारा दिए गए वोटों के लिए, बल्कि मतदान से जुड़े किसी भी कार्य के लिए भी मुकदमे से छूट है।
हालांकि, 2024 में तत्कालीन प्रधान न्यायाशीध डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की सात जजों की संविधान पीठ ने 1998 के फैसले को पलट दिया। अदालत ने वोट के बदले नोट मामले में सांसदों-विधायकों को आपराधिक मुकदमे से छूट देने से इनकार कर दिया और कहा कि संसदीय विशेषाधिकार के तहत रिश्वतखोरी की छूट नहीं दी जा सकती।
पुराना संसद भवन
संसद में लहराए गए नोट, कई नेताओं को जेल तक हुई
2008 का नोट कांड भी काफी सुर्खियों में रहा जब नोट के बदले वोट के आरोप लगे। दरअसल 22 जुलाई 2008 को लोकसभा में विश्वास मत के दौरान भाजपा सांसदों ने नोटों की गड्डियां लहराई थीं। भाजपा सांसदों ने आरोप लगाया कि यह रकम उन्हें विश्वास मत के पक्ष में मतदान करने के लिए दी गई थी। यह घटना उस वक्त की है वाम मोर्चे ने भारत-अमेरिका परमाणु समझौते के मुद्दे पर यूपीए-1 सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया था। इस मामले में सात लोगों पर आरोप थे जिनमें पूर्व सपा नेता अमर सिंह, भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी के पूर्व सहयोगी सुधींद्र कुलकर्णी, भाजपा कार्यकर्ता सोहेल हिंदुस्तानी और भाजपा के तीन सांसद शामिल अशोक अर्गल, फग्गन सिंह कुलस्ते और महावीर भगोरा भी शामिल थे। इस मामले में अमर सिंह और सुधींद्र कुलकर्णी को 49 और 52 दिन जेल में बिताने पड़े थे, जबकि फग्गन कुलस्ते, महावीर भगोरा और सोहेल हिंदुस्तानी को दो-तीन महीने की जेल हुई थी।
हालांकि, 2013 में अमर सिंह, सुधींद्र कुलकर्णी और दो सांसदों सहित तीन भाजपा नेताओं को बड़ी राहत देते हुए अदालत ने 2008 के कैश-फॉर-वोट मामले में उन्हें क्लीन चिट दे दी। अदालत ने कहा कि रिकॉर्ड में मौजूद तथ्य उनके खिलाफ कार्यवाही के लिए पर्याप्त आधार नहीं बनाते। हालांकि, सात आरोपियों में से केवल एक, अमर सिंह के पूर्व सहयोगी संजीव सक्सेना के खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 12 (लोक सेवक को अवैध लाभ पहुंचाने से संबंधित अपराध के लिए उकसाना) के तहत कार्यवाही करने का आदेश दिया गया था। उन्हें आपराधिक साजिश से बरी कर दिया गया।
सीता सोरेन (फाइल)
सीता सोरेन पर लगा रिश्वत लेने का आरोप
2012 में झारखंड मुक्ति मोर्चा की तत्कालीन विधायक सीता सोरेन पर राज्यसभा चुनाव 2012 में एक उम्मीदवार को वोट देने के लिए रिश्वत लेने का आरोप लगाया गया था। बाद में जब चुनाव आयोग ने पाया कि राज्यसभा चुनावों में समझौता किया गया था तो चुनावों को रद्द कर दिया। इसी मामले में उनके खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज किया गया। हालांकि, सीता सोरेन विधायी छूट का दावा करते हुए झारखंड उच्च न्यायालय पहुंच गईं। सुनवाई के दौरान सीता सोरेन ने नरसिम्हा राव मामले के हवाले से अपना बचाव किया था। हालांकि, झारखंड उच्च न्यायालय ने विधायी छूट का दावा करने वाली सीता सोरेन की याचिका को खारिज कर दिया था।
महुआ मोइत्रा (फाइल)
सवाल के बदले रिश्वत के आरोप में महुआ मोइत्रा की सांसदी छिनी थी
2023 में तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा पर कारोबारी दर्शन हीरानंदानी के कहने पर संसद में सवाल पूछने का आरोप लगा था। अक्तूबर 2023 में भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने तृणमूल कांग्रेस की नेता महुआ मोइत्रा के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी। इसके बाद दिसंबर 2023 में महुआ मोइत्रा लोकसभा सदस्यता रद्द कर दी गई। पैसे लेकर संसद में सवाल पूछने के आरोपों की जांच करने वाली संसद की आचार समिति की रिपोर्ट सौंपने के बाद लोकसभा में यह फैसला लिया गया था। इस रिपोर्ट में महुआ की सांसदी खत्म करने की सिफारिश की गई थी। बाद में सीबीआई और ईडी ने भी इस मामले में अलग-अलग ममले दर्ज किए और जांच जारी है।