भारत और मॉरीशस का ऐतिहासिक रिश्ता क्या रहा है? अफ्रीकी महाद्वीप पर स्थित एक देश में भारतवंशियों की आबादी कैसे बस गई और इनकी संख्या कितनी है? इसके अलावा मॉरीशस का इतिहास क्या है और यहां के राष्ट्रीय दिवस का महात्मा गांधी से क्या संबंध है? भारत और मॉरीशस के रिश्ते कितने अहम हैं
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मंगलवार को दो दिवसीय दौरे पर मॉरीशस पहुंच गए। यहां मॉरीशस के पीएम नवीन रामगुलाम समेत सभी मंत्री उनके स्वागत के लिए पहुंचे। पीएम ने एयरपोर्ट पर उतरने के बाद सबसे पहले स्वागत के लिए जुटे प्रवासी भारतीयों से मुलाकात की। इस दौरान यहां रहने वाली महिलाओं ने बिहारी संगीत गाकर पीएम का स्वागत किया। आज मॉरीशस में कुछ कार्यक्रमों में हिस्सा लेने के बाद 12 मार्च को पीएम मॉरीशस के राष्ट्रीय दिवस समारोह में मुख्य अतिथि के तौर पर शामिल होंगे। मजेदार बात यह है कि मॉरीशस के राष्ट्रीय दिवस का भारत के राष्ट्रपति महात्मा गांधी से जुड़ाव है।
मॉरीशस का पूर्व इतिहास क्या हैआइये जाने

मॉरीशस पूर्वी अफ्रीका में मौजूद एक देश है, जो कि भारत हिंद महासागर के जरिए भारत से सीधे तौर पर जुड़ता है। लोकेशन के हिसाब से यह पश्चिमी हिंद महासागर में आता है। इसके चलते कूटनीतिक तौर पर भी ये देश भारत के लिए काफी अहम है।
मौजूदा समय में मॉरीशस की 12 लाख की आबादी में से करीब 70 फीसदी जनसंख्या भारतवंशियों की है। वहीं, मॉरीशस में धर्मों की बात करें तो यहां हिंदू धर्म को मानने वाले करीब 48 प्रतिशत हैं, इसके बाद 32 फीसदी ईसाई, 18 फीसदी मुस्लिम और 1.6 फीसदी अन्य धर्म के लोग हैं।
जिस कार्यक्रम में पीएम मोदी मुख्य अतिथि, उसका महात्मा गांधी से क्या जुड़ाव?
मॉरीशस में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जिस राष्ट्रीय दिवस समारोह में हिस्सा लेने गए हैं, उसका भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी से सीधा जुड़ाव है। दरअसल, 1901 में जब महात्मा गांधी दक्षिण अफ्रीका में नस्लीय भेदभाव के खिलाफ सफलतापूर्वक आंदोलन कर के भारत लौट रहे थे, तब वे कुछ समय के लिए मॉरीशस में भी रुके थे। इस दौरान उन्होंने ब्रिटिश शासन वाले मॉरीशस में बसे भारतवंशियों से बात की थी और उन्हें बदलाव के तीन संदेश दिए थे। इसके तहत गांधी ने भारतीयों को शिक्षा का महत्व, राजनीतिक सशक्तीकरण और भारत से जुड़े रहने का मंत्र दिया था।
मॉरीशस, 12 मार्च की तारीख और महात्मा गांधी
– बताया जाता है कि महात्मा गांधी की प्रेरणा और भारत की आजादी के लिए उनके संघर्ष को देखते हुए 12 मार्च को मॉरीशस का राष्ट्रीय दिवस मनाना निश्चित किया गया।
– दरअसल, 12 मार्च 1930 ही वह दिन था, जब महात्मा गांधी ने अंग्रेज शासन के खिलाफ अहिंसक सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत की थी।
– 1968 में जब मॉरीशस को ब्रिटिश शासन से आजादी मिली तो उसने 12 मार्च 1968 को ही संविधान लागू करने का दिन तय किया।
– इसके बाद 12 मार्च 1992 मॉरीशस एक गणतंत्र के तौर पर स्थापित हुआ।
आजादी के बाद मॉरीशस में कैसे हुए राजनीतिक बदलाव?
भारत ने ब्रिटिश शासन से आजादी आजादी मिलने के बाद जिन देशों से राजनयिक रिश्ते शुरू किए, उनमें मॉरीशस सबसे अहम रहा। दोनों देशों के संबंध 1948 में शुरू हुए थे। इसके बाद 1968 में जब मॉरीशस को ब्रिटिश शासन से आजादी मिली, तब इस देश में दो राजनीतिक परिवारों का उदय हुआ। इनमें एक रामगुलाम परिवार और दूसरा जुगनाथ परिवार रहा। जहां रामगुलाम परिवार से शिवुसागर रामगुलाम और उनके बेटे नवीन रामगुलाम ने मॉरीशस की सत्ता संभाली, वहीं जुगनाथ परिवार से अनिरुद्ध जुगनाथ और उनके बेटे प्रवींद ने प्रधानमंत्री पद लिया।
मॉरीशस में शिवुसागर रामगुलाम को देश के आजादी के संघर्ष में योगदान देने वाले नेता के तौर पर जाना जाता है। वह आजादी के बाद मॉरीशस के पहले प्रधानमंत्री बने। मॉरीशस की आजादी के संघर्ष के दौरान वे भारतीय स्वतंत्रता सेनानी- महात्मा गांधी, जवाहर लाल नेहरु से लेकर सरोजिनी नायडू से लगातार संपर्क में रहे। इतना ही नहीं नेताजी सुभाष चंद्र बोस के भी रामगुलाम से अच्छे संबंध रहे। बताया जाता है कि शिवुसागर ने बोस की किताब द इंडियन स्ट्रगल (1934) की प्रूफ रीडिंग भी की थी।
भारत के लिए क्या है मॉरीशस की कूटनीतिक अहमियत
हिंद महासागर के जरिए सीधा जुड़ाव होने की वजह से भारत के लिए मॉरीशस की कूटनीतिक अहमियत काफी ज्यादा है। 2015 में जब प्रधानमंत्री मॉरीशस के पहले दौरे पर गए थे, तब दोनों देशों ने मॉरीशस के अगलेगा द्वीप पर परिवहन व्यवस्था बेहतर करने के लिए समझौता किया। दरअसल, यह द्वीप मॉरीशस के मेनलैंड से करीब 1100 किमी दूर स्थित है और भारत के भूमि क्षेत्र के करीब है। यह छोटा टापू करीब 70 वर्ग किलोमीटर के इलाके में फैला है और भारत की सुरक्षा के मद्देनजर अहम है। फरवरी 2024 में भारत और मॉरीशस ने इस द्वीप पर एक एयर स्ट्रिप और जेटी प्रोजेक्ट का उद्घाटन किया था, जो कि क्षेत्र में भारत की रक्षा के लिहाज से बड़ा कदम साबित हुआ। इतना ही नहीं चीन की कब्जे वाली नीति को देखते हुए मॉरीशस से दूर स्थित क्षेत्र की सुरक्षा के लिए भी यह प्रोजेक्ट अहम है।