इसरो का 100वां मिशन किस बारे में था? आखिर इसकी सफलता के क्या मायने हैं? किस क्षेत्र में भारत अब जल्द ही दूसरी महाशक्तियों पर निर्भरता को पूरी तरह खत्म कर सकता है? आइये जानते हैं…
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) का 100वां लॉन्च मिशन सफल हो गया है। एनवीएस-02 उपग्रह को सफलतापूर्वक कक्षा में स्थापित करने के बाद इसरो की इस उपलब्धि को बड़ा मुकाम करार दिया जा रहा है। देशभर की बड़ी हस्तियों ने इस मिशन की सफलता को लेकर इसरो को बधाई दी हैं।
इसरो ने बुधवार सुबह 6.23 बजे अपना 100वां मिशन लॉन्च किया। इसके तहत श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर से जीएसएलवी-एफ15 के जरिए 2250 किलोग्राम की नैविगेशन सैटेलाइट एनवीएस-02 को भेजा गया। नैविगेशन उपग्रह एनवीएस-2 नैविगेशन विद इंडियन कॉन्स्टलेशन यानी नाविक शृंखला का दूसरा उपग्रह है। इस शृंखला में कुल पांच सैटेलाइट भेजी जानी हैं।
इससे पहले एनवीएस-01, जो दूसरी पीढ़ी का पहला सैटेलाइट था, 29 मई 2023 को जीएसएलवी-एफ12 के जरिए लॉन्च किया गया था। जबकि, एनवीएस-02, एनवीएस सीरीज का दूसरा सैटेलाइट है। इसमें एल1, एल5 और एस बैंड में नेविगेशन पेलोड के साथ-साथ सी-बैंड में रेंजिंग पेलोड भी लगाया गया है, जैसा कि इसकी पहली पीढ़ी की सैटेलाइट एनवीएस-01 में था।
- अंतरिक्ष मामलों के विशेषज्ञों के मुताबिक, एनवीएस-02 के जरिए भारत अपने नाविक सिस्टम को मजबूत करेगा।
- इसरो का यह उपग्रह पूरी तरह स्वदेशी तकनीक से देश में ही बना है। इसे यूआर सैटेलाइट सेंटर (यूआरएससी) में डिजाइन, विकसित और तैयार किया गया है। नवंबर-दिसंबर 2024 के बीच इस सैटेलाइट की टेस्टिंग की गई, जिसमें इसकी हर परिस्थिति का सामना करने की काबिलियत को परखा गया।
- इसमें भारत के सटीक समय की जानकारी देने के लिए एक परमाणु घड़ी भी लगाई गई है, जिसे रूबिडियम एटॉमिक फ्रीक्वेंसी स्टैंडर्ड (आरएएफएस) भी कहा जाता है।
- जिस नाविक प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिए इस उपग्रह को लॉन्च किया गया है, उसके जरिए भारत को कई क्षेत्रों में स्वतंत्र और स्वायत्त बनाने के लिए की गई है। मसलन भारत में अभी नक्शों से लेकर मोबाइल-कंप्यूटर पर समय तक के लिए लोगों को विदेशी तकनीक पर निर्भर रहना पड़ता है।
- भारत में नक्शे पर किसी भी जगह या किसी चीज की सटीक स्थिति बताने, गति और डिजिटल डिवाइसेज पर सही समय बताने के लिए देश अब तक अमेरिका के ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (जीपीएस) तकनीक या रूस के ग्लोनास (GLONASS) सिस्टम पर निर्भर है।
- इतना ही नहीं दुनिया की अधिकतर महाशक्तियों ने सैटेलाइट नैविगेशन सिस्टम के क्षेत्र में स्वायतत्ता हासिल करने के लिए अपनी खुद की प्रणालिया बना ली हैं। अमेरिका और रूस के अलावा चीन ने अपना बेइडू (BeiDou) नैविगेशन सिस्टम स्थापित किया है। इसके अलावा यूरोपीय संघ अपने क्षेत्र में नैविगेशन सेवाओं के लिए गैलिलियो सिस्टम का इस्तेमाल करता है
भारत की तरफ से अपना नैविगेशन सिस्टम- नाविक बनाने की एक अहम वजह कूटनीतिक स्तर पर स्वतंत्रता और स्वायत्तता हासिल करना है। दरअसल, किसी तनाव की स्थिति में विदेशी ताकतें अपने सैटेलाइट नैविगेशन सिस्टम के इस्तेमाल को दूसरे देशों के लिए बंद कर सकती हैं।
भारत के साथ 1999 में यह हो भी चुका है। कारगिल युद्ध के दौरान भारत ने अमेरिका से अपने ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (जीपीएस) के जरिए ट्रैकिंग की सुविधा कारगिल में मुहैया कराने की मांग की थी। इसके जरिए भारत आतंकियों की सही स्थिति जानने की कोशिश में था। हालांकि, तब अमेरिका ने इस मांग को नकार दिया था। तब भारत को पहली बार अपने स्वदेशी सैटेलाइट नैविगेशन सिस्टम की जरूरत महसूस हुई, जो देश के नक्शे पर सही स्थिति, सही समय और गति बताने का काम करे। इसी कड़ी में 2006 में भारत ने स्वदेशी प्रोजेक्ट नाविक की शुरुआत की।
- भारत की तरफ से इस प्रोजेक्ट में सैटेलाइट लॉन्च करने की प्रक्रिया 2013 से ही शुरू कर दी गई थी। तब भारत ने आईआरएनएसएस वर्ग की सैटेलाइट लॉन्च की थीं। 2013 से 2018 तक इस रेंज की कुल नौ सैटेलाइट लॉन्च की गईं।
- भारत ने इसके बाद एनवीएस सीरीज की सैटेलाइट्स लॉन्च करना शुरू किया। इन सैटेलाइट का मकसद आईआरएनएसएस सैटेलाइट प्रणालियों को और मजबूत करना है। एनवीएस-2 इस श्रेणी की सबसे नई सैटेलाइट है।
- इस प्रोजेक्ट के तहत अब तक कुल 11 सैटेलाइट (नौ IRNSS सैटेलाइट और दो NVS सैटेलाइट) लॉन्च की गई हैं, जिनमें से एक का लॉन्च नाकाम रहा था। वहीं 10 सैटेलाइट अपनी कक्षाओं में हैं। इनमें से 6 सैटेलाइट ठीक ढंग से काम कर रही हैं। वहीं चार सैटेलाइट शॉर्ट मैसेज ब्रॉडकास्ट सेवाओं में काम आ रही हैं।
बताया जाता है कि भारत के इस नैविगेशन सिस्टम को समय के साथ ही पूरी दुनिया में फैलाया जाएगा। यानी जीपीएस और ग्लोनास की तरह ही भारत का नाविक भी दुनिया में मौजूद हर क्षेत्र में नैविगेशन यानी निगरानी के काम आएगा। वह भी सिर्फ जमीन के क्षेत्र में नहीं, बल्कि नौपरिवहन में भी इस सिस्टम की बड़ी भूमिका होगी और समुद्र-महासागर में मौजूद शिप-पोतों के अलावा बाकी गतिविधियों पर नजर रखी जा सकेगी।
भारत को अपने नाविक सिस्टम को दुनिया में फैलाने के लिए पृथ्वी से करीब 24,000 किलोमीटर ऊपर 24 सैटेलाइट्स का एक अलग कॉन्स्टलेशन खड़ा करना पड़ेगा, जो कि बड़े क्षेत्र में कवरेज देने में सक्षम होगा। रिपोर्ट्स के मुताबिक, इसरो ने केंद्र सरकार को पृथ्वी की मध्य कक्षा में 12 सैटेलाइट स्थापित करने का प्रस्ताव दिया है, जिसके जरिए धीरे-धीरे नाविक को पूरी दुनिया में नैविगेशन के लिए इस्तेमाल किया जा सकेगा।